NEW STEP BY STEP MAP FOR BEST HINDI STORY

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गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनंद की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ चतुरसेन शास्त्री

सभी जानवरों ने इंसानो से मदद मांगी और इस नतीजे पर पहुंचे कि मोर की वजह से का-संगी को आसमान से अपनी गर्मी बरसाने का समय नहीं मिल रहा है। इसलिए मोर को वापस धरती पर लाना सभी के लिए जरूरी है। उन्होंने एक बूढ़ी औरत की मदद से पृथ्वी को बचाने के लिए एक और तरकीब लगाई और मोर को आकर्षित कर वापिस धरती पर आने के लिए मजबूर कर दिया। 

मधुसूदन आनंद की 'करौंदे का पेड़', 'टिड्डा' और 'मिन्नी', संजय खाती की 'पिंटी का साबुन', पंकज बिष्ट की 'बच्चे गवाह नहीं हो सकते', भैरव प्रसाद गुप्त की 'मृत्यु' दैली अद्भुत कहानी.

आधुनिक बनने का प्रदर्शन करते शहरी मध्यवर्गीय परिवार के करियरिज़्म पर एक तीखी टिप्पणी की तरह है यह एक और अविस्मरणीय कहानी.

राहुल ने अपने पापा से बताया। उसके पापा कालिया की हरकत को जानते थे। वह पहले भी देख चुके थे।

फिर भी आपने उसको अपने हाथ से बचाया। आप ऐसा क्यों कर रहे थे ?

During this novel, a youthful boy Bunti looks for the grown-up entire world of his household through his little one eyes and wounded eyes. But no matter whether this novel is about Bunti or his mom Shakun can be a bone of rivalry. Shakun’s ambitions and self-great importance for herself is a challenge for the family members, finally leading to her separation from her spouse. On this conflict in between a partner a spouse, it is actually Bunti who suffers the most. The novel is highly acclaimed and praised for its understanding of youngster psychology.

उसी हिंदी के सामने 'उसने कहा था' की वो हिंदी जो आज भी इसलिए ताज़ा और समकालीन लगती है क्योंकि वो एक ओर तो जीवित-व्यावहारिक भाषा को रचना का आधार बनाती है और दूसरी ओर वो इस भाषा की व्यंजनाओं को विरल विलक्षण आँख से पकड़ती है.

टॉफी बड़ा थी, रानी उठाने की कोशिश करती और गिर जाती। रानी ने हिम्मत नहीं हारी। वह दोनों हाथ और मुंह से टॉफी को मजबूती से पकड़ लेती है ।

मोरल – संसार में मां की ममता का कोई जोड़ नहीं है अपनी जान विपत्ति में डालकर भी अपने बच्चों के हित में कार्य करती है।

(एक) रज्जब क़साई अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रक़म। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफ़ी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुरा-नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। वृंदावनलाल वर्मा

दुर्भाग्य से इस कहानी की अब तक की गई चर्चा सिर्फ़ इसके कथ्य यानी एक गहरे भावुक प्रेम की त्रासद विडंबना के ही संदर्भ में की गई है और जिसका आधार लहना सिंह और उसकी प्रेमिका के बीच के इस संवाद तक हमेशा समेट दिया जाता है :

"यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार get more info करती हुई. यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं हट जा – जीणे जोगिए; हट जा करमाँवालिए; हट जा पुत्ताँ प्यारिए; बच जा लंबीवालिए.

एक दिन की बात है, दोनों खेल में लड़ते-झगड़ते दौड़ रहे थे।

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